IPS Ilma Afroz(इल्मा अफ़रोज़) गरीबी से लड़ कर किया ऑक्सफोर्ड तक का सफर, देश लिए विदेश की नौकरी छोड़ दी

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IPS Ilma Afroz(इल्मा अफ़रोज़) गरीबी से लड़ कर किया ऑक्सफोर्ड तक का सफर, देश लिए विदेश की नौकरी छोड़ दी

2022-05-16 16:26| 来源: 网络整理| 查看: 265

इंसान एक धावक है और ये जीवन बाधा दौड़ का एक मैदान । हर इंसान इस मैदान पर दौड़ना तो सीख लेता है लेकिन बाधाओं को पार करने और निरंतर आगे बढ़ते रहने का हुनर हर किसी के पास नहीं होता । जो लोग इस हुनर के साथ पैदा होते हैं उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि वह किन परिस्थितियों में पल रहे हैं । उनका ध्यान सिर्फ उस लक्ष्य पर होता है जिसे उन्होंने भेदना है । आज की कहानी भी एक ऐसी महिला आईपीएस ऑफिसर की है जो अपने जीवन में आने वाली तमाम परेशानियों को नजरअंदाज करते हुए आगे बढ़ती गईं ।

गरीबी में हुआ जन्म 

इल्मा अफ़रोज़ Your Story

आज भी हमारे देश में कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां के लोग बेटियों की पढ़ाई पर खर्च करना फ़िज़ूल समझते हैं । आज के प्रगतिशील दौर में भी उनके दिमाग में यही बात घर कर के बैठी है कि बेटियों को तो एक ना एक दिन पराया ही होना है फिर क्यों उनकी पढ़ाई पर खर्च किया जाए । इल्मा अफ़रोज़ का जन्म भी ऐसी ही मानसिकता वाले लोगों के बीच हुआ । पीतल नगरी नाम से प्रसिद्ध मुरादाबाद के कुंदरकी कस्बे की इल्मा का जन्म एक साधारण किसान परिवार में हुआ । साधारण किसान वे होते हैं जिनके तमाम जरूरी खर्च उनके खेतों में खड़ी फसल पर निर्भर होते हैं । फसल पकने के बाद खर्च के अलावा जो रकम बचती है वे उसे फिर से खेतों में ही लगा देते हैं । 

ऐसे साधारण किसानों के खेतों से उपजा अनाज देश का पेट तो भरता है लेकिन किसान के परिवार की सभी जरूरतें पूरी नहीं हो पातीं । ऐसा माहौल जहां अपनी जरूरतें नहीं पूरी हो रहीं वहां भला इल्मा की पढ़ाई पर कौन ध्यान देता लेकिन इल्मा भाग्यशाली रहीं, उन्हें ऐसा परिवार मिला जो हाथ में फसल के पैसे आते ही सबसे पहले इल्मा की स्कूली जरूरतों तो पूरा करता । घर की बाकी जरूररतें बाद में पूरी होतीं, उससे पहले इल्मा के लिए पेंसिल, कॉपी और किताबों का बंडल आ जाता ।

लोगों ने कसे तंज, मां ने समझाया

Ilma Your Story

इल्मा जब मात्र 14 साल की थी तभी उनके पिता का निधन हो गया । एक तो गरीबी ऊपर से पिता का साया सिर पर से उठ जाना, ऐसे में भला इल्मा कैसे आगे बढ़ सकती थी लेकिन उनकी मां ने खेतों में काम कर के उसे और उसके छोटे भाई को पाला । परिवार का इल्मा की पढ़ाई पर इस तरह से खर्च करना वहां के लोगों को अखरता था । लोग तंज कसते हुए कहते कि ‘लड़की को सिर पर चढ़ाना ठीक नहीं, आखिर एक दिन तो उसे पराए घर की ही हो जाना है ।’ लोगों के तंज तब मायने कहाँ रखते हैं जब आपका परिवार आपके साथ खड़ा हो । इल्मा की मां ने उसे हमेशा समझाया कि निरंतर आगे बढ़ते रहो, संघर्ष और कड़ी मेहनत करो । वह हमेशा इल्मा को सिखाती कि चाहे जितनी भी कठिनाइयां आएं मगर तुम्हारा ध्यान अर्जुन की तरह केवल मछली की आंख पर होना चाहिए । 

बचपन से ही थी निडर और साहसी

जो इंसान जीवन की परिस्थितियों का डट कर सामना करना सीख जाता है वह फिर दोबारा किसी से नहीं डरता । इल्मा की परिस्थितियों ने भी उसे निडर बना दिया था । एक बार वह छात्रवृति के सिलसिले में डीएम के ऑफिस पहुंची । वहां खड़े गार्ड ने इल्मा को बच्चा समझ कर कहा कि ‘जाओ किसी बड़े को अपने साथ ले कर आओ, यहाँ बच्चों का कोई काम नहीं ।’ इल्मा को यह बात पसंद नहीं आई । अन्य कोई बच्चा होता तो शायद वहां से लौट आता लेकिन इल्मा ने ऐसा नहीं किया, उसने हिम्मत दिखाई और सीधा डीएम के ऑफिस में जा घुसी । इस बात पर शायद डीएम को नाराज़ होना चाहिए था लेकिन इसके विपरीत डीएम इल्मा की इस हरकत पर मुस्कुरा दिए । इल्मा ने अपने आने का कारण बताया तो डीएम ने भी फॉर्म पर दस्तखत कर दिए । इसके साथ ही उन्होंने इल्मा से कुछ ऐसा कहा जिसने इल्मा के जीवन को आगे चल कर एक नई दिशा दिखाई । उन्होंने कहा कि “इल्मा तुम सिविल सर्विसेज ज्वाइन करो!. 

इल्मा ने इस बात पर तब शायद उतना गौर नहीं किया । वह आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली चली गई । यहीं से दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इल्मा ने दर्शनशास्त्र में बी ए ऑनर्स की डिग्री प्राप्त की । इसके बाद उन्हें छात्रवृति मिली और इंग्लैंड की ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ने का मौका भी । लेकिन घर के हालत ये थे कि इल्मा के पास हवाई यात्रा के पैसे तक नहीं थे । जैसे तैसे पैसों का इंतजाम कर के वह इंग्लैंड पहुंची और यहां से शुरू हुआ एक गरीब किसान की बेटी के जीवन का नया अध्याय ।

कामयाबी मिली मगर देश नहीं भूली

Ilma Afroz Your Story

इंग्लैंड की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वुल्फ्सन कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद इल्मा कार्य अनुभव लेने के लिए न्यूयार्क चली गईं । एक गरीब किसान की बेटी जो एक पिछड़े इलाके से आई थी, उसका यहां तक पहुंच पाना अपने आप में किसी चमत्कार से कम नहीं था । अब भला इल्मा को चाहिए ही क्या था, सब कुछ तो था उसके पास । वह विदेश में पढ़ी थी, उसके पास अच्छी जॉब का ऑफर था, विदेश का ऐश ओ आराम था, आगे सुनहरा भविष्य था । इंसान को इससे ज़्यादा और क्या चाहिए लेकिन इल्मा को कुछ कमी लग रही थी । उसे अपना देश अपने लोग याद आ रहे थे । 

वह जब भी छुट्टियों में घर आती तो अपने लोगों की आँखों में अपने प्रति गर्व देखती । उन्हें इस बात की खुशी थी कि उनकी बेटी हवाई जहाज में बैठ कर सात समंदर पार गई है । इल्मा को अपने लोगों की मेहनत और उनकी परेशानियां दिखती थीं । वह सोचती कि उसके इतना पढ़ने लिखने का क्या फायदा अगर वह अपने लोगों के काम ना आ सके । इसी सोच के साथ इल्मा ने फिर से अपने देश लौटने का मन बना लिया ।    

पूरा हुआ सपना

यहां आ कर इल्मा ने देखा कि हर कोई परेशानी में फंसा हुआ है और उनकी मदद करने वाला कोई नहीं । छोटी छोटी बातों के लिए लोग इल्मा के पास आते थे । ऐसे में उन्हें खयाल आया कि वह सिविल सर्विसेज़ में जा कर इन सबकी मदद कर सकती हैं । इनके भाई ने भी इन्हें प्रोत्साहित किया और इल्मा निकल पड़ीं अपने जीवन को एक नई दिशा देने । इल्मा ने यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी । उन्होंने अपने आस पास की घटनाओं पर नज़र बनाना शुरू किया । सिविल सेवा परीक्षा में इल्मा ने वैकल्पिक विषय के रूप में दर्शनशास्त्र चुना और बी .ए.के दौरान पढ़ी गयी किताबों को दोहराना शुरू कर दिया । उनका कमरा किताबों और नोट्स से पूरी तरह भर चुका था । सोते जागते सिर्फ एक ही खयाल आता था उनके दिमाग में और वो यह कि उन्हें ये परीक्षा पास करनी है । 

यह साल 2017 था जब इल्मा ने अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया । उनकी मेहनत रंग लाई और 26 साल की इल्मा ने 217 रैंक के साथ यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली । वह चाहतीं तो भारतीय विदेश सेवा चुन सकती थीं लेकिन उनके मुताबिक उन्हें अपनी जड़ों को सींचना है, अपने देश के लिए अच्छा काम करना है । इस वजह से उन्होंने आईपीएस चुना । इल्मा को हिमाचल प्रदेश कैडर मिला और आज वह अपने देश और अपने लोगों की सेवा कर रही हैं.



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